“तेरी महफ़िल से जो निकला तो ये मंज़र देखा तुम ने अच्छा ही किया मुझ से किनारा कर के “मिरी ख़्वाहिश है कि आँगन में न दीवार उठे बस मेरी ही तन्हाई उसे दिखाई नहीं देती। कभी ऐ हक़ीक़त-ए-मुंतज़र नज़र आ लिबास-ए-मजाज़ में साथ हैं सब मगर दिल क्यों अकेला https://youtu.be/Lug0ffByUck